असम से लाए गए वनभैंसे बाड़े में क्यों : हाईकोर्ट
जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से मांगा जवाब
रायपुर । असम से लाए गए वनभैंसों को बारनवापारा के जंगल सफारी में रखकर ब्रीडिंग कराने की छत्तीसगढ़ सरकार की योजना को केन्द्रीय जू अथारिटी द्वारा नामंजूर किए जाने के बाद इन वनभैंसों को अभी भी कैद में रखने के लिए हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब मांगा है।
हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविन्द्र अग्रवाल की युगल बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। वन्यजीव प्रेमी याचिकाकर्ता नितिन सिंघवी की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि असम सरकार की शर्त थी कि अप्रैल 2023 में लाए गए 4 मादा वन भैंसों को 45 दिनों में जंगल में छोड़ा जाएगा, लेकिन एक वर्ष से अधिक हो गया, इन मादा वनभैंसों को अभी भी बारनवापारा अभयारण्य के बाड़े में रखा गया है। 2020 में लाये गए एक नर और एक मादा को भी कैद कर रखा गया है।
छत्तीसगढ़ में वनभैंसों के संरक्षण की योजनाओं की विफलता और विलुप्त होती इनकी आबादी को देखते हुए वन विभाग ने जंगल सफारी में रखकर ब्रीडिंग की योजना बनाई थी। इसके लिए असम से एक नर और एक मादा वनभैंसा वर्ष 2020 में और चार मादा वनभैंसा अप्रैल 2023 में लाई गई थीं। इन्हें बारनवापारा अभ्यारण्य के बाड़े रखा गया है। केन्द्रीय जू अथॉरिटी ने इस योजना को नामंजूर कर दिया। इसके बाद इन वनभैंसों को उनके प्राकृतिक वातावरण में छोड़ दिया जाना था, लेकिन उन्हें अभी भी जंगल सफारी के बाड़े में ही रखा गया है।
कोर्ट को बताया गया कि असम से इन वनभैंसों को छत्तीसगढ़ के वनभैंसा से ब्रीडिंग करा कर आबादी बढ़ाने के लिए लाया गया था। छत्तीसगढ़ में केवल एक शुद्ध नस्ल का नर “छोटू” है, जिसकी आयु वर्तमान में 22-23 वर्ष है। वनभैंसों की औसत आयु 25 वर्ष होती है और इतनी अधिक आयु होने के कारण उसे प्रजनन के लिए अयोग्य माना जाता है। उम्र के चलते छोटू का वीर्य भी नहीं निकला जा सकता। छत्तीसगढ़ वन विभाग ने छत्तीसगढ़ के क्रॉस ब्रीड (अशुद्ध नस्ल) के वन भैसों से असम से लाई गई मादा वन भैसों से प्रजनन कराने के अनुमति केन्द्रीय जू अथॉरिटी से मांगी गई थी, जिसे यह कह कर नामंजूर कर दिया कि केन्द्रीय जू अथॉरिटी के नियम अशुद्ध नस्ल से प्रजनन कराने की अनुमति नहीं देते।
छत्तीसगढ़ सरकार का ब्रीडिंग प्लान ही सवालों के घेरे में
केन्द्रीय जू अथॉरिटी ने असम से वन भैसा लाने के बाद बारनवापारा में बनाये गए ब्रीडिंग सेंटर को सैद्धांतिक अनुमति दी थी परंतु अंतिम अनुमति नहीं दी। याचिका में इस सैद्धांतिक अनुमति को भी चुनौती दी गई है क्योंकि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत किसी भी अभ्यारण्य में ब्रीडिंग सेंटर नहीं खोला जा सकता। भारत सरकार ने भी एडवाइजरी जारी कर रखी है कि किसी भी अभ्यारण, नेशनल पार्क में ब्रीडिंग सेंटर नहीं खोला जा सकता। केन्द्रीय जू अथॉरिटी की सैद्धांतिक अनुमति को भी यह कह कर चुनौती दो गई है कि जब अभ्यारण्य में ब्रीडिंग सेंटर खोला ही नहीं जा सकता तो सैद्धांतिक अनुमति कैसे दी गई है।
वनभैंसों की दो पीढ़ियां बाड़े में कैद
वन विभाग ने कोर्ट को बताया है कि असम से लाये गए वनभैसों की तीसरी पीढ़ी को ही जंगल में छोड़ा जायेगा। याचिका में बताया गया है कि वन भैंसा शेड्यूल एक का वन्यप्राणी है और वनजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 11 के अनुसार किसी भी अनुसूची एक के वन्यप्राणी को तब तक बंधक बना कर नहीं रखा जा सकता जब तक कि वह छोड़े जाने के लिए अयोग्य ना हो। असम के सभी वनभैंसे स्वस्थ है और इन्हें जंगल में छोड़ा जा सकता है। इन्हें बाड़े में कैद रखने के आदेश भी मुख्य वन संरक्षक ने जारी नहीं किये है और गैरकानूनी रूप से इन्हें कैद करके रखा गया है।
प्लान फेल वापस असम भेजें
याचिका में बताया गया है कि 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने गोधावर्मन के प्रकरण में आदेशित किया है कि छत्तीसगढ़ के वनभैंसों की शुद्धता हर हाल में बरकरार रखना है। एक मात्र शुद्ध नस्ल का छोटू उम्रदराज है, उससे प्रजनन करना असंभव है। शुद्धता रखने के लिए अशुद्ध नस्ल के वनभैंसों से क्रॉस नहीं कराया जा सकता। असम से लाये गए वन भैंसों को अगर उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व में छोड़ा जाता है तो वहां दर्जनों अशुद्ध नस्ल के कई वन भैंसे हैं, जिनसे क्रॉस होकर असम की शुद्ध नस्ल की मादा वन भैंसों की संतानें मूल नस्ल की नहीं रहेंगी इसलिए इन्हें उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व में नहीं छोड़ा जा सकता। अगर इन्हें बारनवापारा अभ्यारण्य में ही छोड़ दिया जाता है तो असम के एक ही नर वनभैंसे की संतानें होने से असम के वनभैसों का जीन पूल खराब हो जाएगा, इसलिए इन्हें बारनवापारा में भी नहीं छोड़ा जा सकता। याचिका में असम से लाये गए वन भैंसों को वापस असम भेजने की मांग की गई है।