गर्मी आते ही जल संकट के हालात तो दूसरी तरफ अंधाधुंध दोहन : पानी की बर्बादी रोकने जनमानस गंभीर नही, प्रतिवर्ष गिरते भू जल का स्तर चिंतनीय
कोरबा, 06 जून – जल के बिना सृष्टि की कल्पना नही की जा सकती। मानव का अस्तित्व जल पर निर्भर करता है। पृथ्वी पर कुल जल का अढ़ाई प्रतिशत भाग ही पीने के योग्य है। जो हमारी जिंदगानी को संवारे हुआ है। किन्तु पानी के अंधाधुंध दोहन से वाटर लेवल तेजी से नीचे जा रहा है तथा गिरते भू जल स्तर के कारण गर्मी के दिनों में साल दर साल पानी की समस्या बढ़ते ही जा रही है। हेंडपम्प भी अब पानी देने में असक्षम होते जा रहे है, केवल सबमर्सिबल पंप, मिनी नलकूप व बड़े नलकूप ही पानी निकाल पा रहे है। किंतु पेयजल संरक्षण को लेकर कोई प्रभावी प्रयास नही हो पा रहा है। आज गांव- गांव में बोर सबमर्सिबल पंप के माध्यम से शुद्ध पेयजल (रनिंग वाटर) की बुनियादी सुविधा उपलब्ध है। किन्तु जल के बचाव हेतु लोग गंभीर नही है।
गर्मियां आते ही जल संकट के हालात बनने पर इस दिशा में बहुत चर्चा होती है। शासन- प्रशासन भी सजग दिखाई देता है लेकिन जैसे ही बरसात आ जाती है प्राथमिकता बदल जाती हैं और इस दिशा में प्रयास शिथिल हो जाते हैं। प्रतिवर्ष जल संकट के बढ़ते हालात को देखते हुए वर्षा जल को जमीन के अंदर संरक्षित करने के साथ ही वाटर हार्वेस्टिंग और पानी को ताल- तलैया व तालाबों आदि में ज्यादा से ज्यादा संरक्षित करने की नितांत आवश्यकता है। कहने का तात्पर्य है कि खेत का पानी खेत मे, गांव का पानी ताल में और ताल का पानी पाताल में रोककर संरक्षित करना होगा तभी कुछ बात बनेगी। लेकिन इस ओर ज्यादा ध्यान न दिए जाने तथा दूसरी तरफ विकास के धुंध में उजड़ते हरियाली से धीरे- धीरे गर्मी अपना रौद्र रूप दिखाने लगी है। इसके कारण पारा चढ़ना शुरू हो गया है। जैसे- जैसे गर्मी प्रतिवर्ष बढ़ रही है उसी के साथ जल संकट का दौर भी गहराने लगा है। गर्मी आते ही जिले के अलग- अलग क्षेत्रों में पानी की कमी की खबरें अखबारों और मीडिया की सुर्खियां बन जाती हैं तथा हर वर्ष गर्मी के दिनों में पानी की समस्या एक आम बात हो चली है।
आखिरकार ऐसी स्थिति तब है, जब कि आने वाले बारिश के मौसम में कई क्षेत्रों में जल प्लावन की खबरें भी सामने आती हैं और अनेक नदियां उफनकर उपना रौद्र रूप दिखाती है। इससे स्पष्ट तौर पर यह बात शीशे की तरह साफ हो जाती है कि पानी की कमी की समस्या नहीं बल्कि पानी के समुचित नियोजन की कमी स्पष्टतः प्रतीत होती है। पृथ्वी पर मात्र आधा प्रतिशत पानी भूगर्भ जल के रूप में जमीन में विद्यमान है। इसी मीठे जल स्रोत पर सिंचाई, पेयजल, उद्योग आदि की जवाबदारी है। यही भूगर्भ जल मनुष्यों से लेकर जानवरों के पेयजल के साथ ही खेती में सिंचाई के काम आता है। लेकिन आज सबसे ज्यादा दोहन इसी भूगर्भ जल का हो रहा है। जिसके चलते भूगर्भ जल स्तर साल दर साल नीचे गिरता चला जा रहा है। अधिकांश जिलों में भूगर्भ जल की स्थिति अत्यंत भयावह है। यदि भूगर्भ जल का समुचित उपयोग करने के साथ ही वर्षा जल के संचय और नियोजन की तरफ ध्यान दें तो इस समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। इसके लिए किसानों से लेकर आम आदमी, शासन- प्रशासन, जनप्रतिनिधि, गैर सरकारी संगठनों आदि को प्रयास करने होंगे। तभी जल संकट के समाधान की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा अन्यथा इतना तो तय है कि जल्द ही इस दिशा में प्रयास नहीं किए गए तो अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए ही होगा।